भारत का इतिहास आंदोलनों से भरा है चाहे वह क्षेत्रीय आंदोलन हो या फिर जाति वर्ग आंदोलन या राष्ट्रीय आंदोलन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर आरंभ में कुछ आंदोलनों के आधार पर स्पष्ट शब्दों में नहीं कहा जा सकता कि इसका विस्तार समाज के सभी वर्गों तक हुआ कि इसका विस्तार समाज के सभी वर्गों थकवा परंतु यह कहा जा सकता है कि इस का मिलाजुला असर रहा अभी तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय समाज का हर वर्ग इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा ||
राष्ट्रीय आंदोलन में कुशल नेतृत्व नवीनतम संचार के माध्यम और राष्ट्रीय संगठनों का विकास हुआ धीरे धीरे जनमानस से प्रभावित होकर इसके दूरगामी परिणाम हेतु जुड़ने लगे परंतु उसके विचार को समझने के लिए हमें राष्ट्रीय आंदोलनों में हुए परिवर्तन को और इसके विकास चक्र को समझना होगा|
आंदोलनों के प्रारंभ में तो यह सीमित वर्ग और स्थान तक सीमित रहा उदाहरण के तौर पर सन 1857 की क्रांति के फल स्वरुप अगर देखा जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय राष्ट्रीय चेतना का उद्भव वहीं से हुआ| कुछ कारणवश वह सफल नहीं हो पाया और आंदोलन सीमित वर्गों और क्षेत्र तक सिमट कर रह गया परंतु इसका असर देशव्यापी हुआ सारा देश मानो एकजुट होकर खड़ा हो गया परंतु इससे पहले कि यह देशव्यापी आंदोलन में तब्दील हो पाता और समाज के हर वर्ग तक इस आंदोलन के लोग जुड़ पाते इसका दमन कर दिया गया| इस को और बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें राष्ट्रीय आंदोलनों के उद्भव और विकास और उसमें परिवर्तन को समझना होगा राष्ट्रीय आंदोलनों का उद्भव औपनिवेशिक शासन और भारतीय समाज के बीच बढ़ते गतिरोध और मतभेद का परिणाम है| यदि हम कुछ देशी राजाओं और जमींदारों और व्यापारियों को छोड़ दें तो यह सीधे तौर पर ब्रिटिश शासन के अधीन लोगों का इसका लाभ सीधे तौर पर मिल रहा था| और भारतीयों के शोषण दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे इस तानाशाही शासन की बागडोर ब्रिटेन के साम्राज्यवादी सरकार के हाथों में थी जो व्यापार में पूंजी पति और समाज के उच्च वर्ग के लोगों की मदद कर रही थी इसके भारतीय समाज काफी आक्रोशित था जो संसार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए बाध्य हो गया और देशव्यापी आंदोलनों का जन्म हुआ|
इसके साथ ही देश के बुद्धिजीवियों ने भी इस दमनकारी नीतियों के खिलाफ और इससे निपटने के लिए जनमत को हित में ध्यान में रखते हुए आंदोलनों का सहारा लिया और देखते ही देखते राष्ट्रीय आंदोलन में बदल गया स्पष्ट शब्दों में कहें तो यह आंदोलन के जरिए आलोचना और पति और आलोचनाओं का वह दौर प्रारंभ हुआ जो आगे चलकर देशव्यापी आंदोलन में तब्दील हुआ|
राष्ट्रीय आंदोलनों ने विशेषकर दो विश्व युद्धों के की अवधि में अपना प्रचार प्रसार किया था | किसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए विभिन्न जातियों और वर्गों के लाखों लोगों को अपने नेतृत्व से जोड़ दिया और अब यह अत्यंत गतिशील हो गया महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 3 बड़े आंदोलन प्रारंभ किए| सविनय अवज्ञा असहयोग आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका सराहनीय रहे जिन्होंने भारत में ब्रिटिश सरकार की न्यूज़ लाकर रख दी इन बड़े और व्यापक आंदोलनों के कारण है| यह सभी वर्गों तक पर पाया औपनिवेशिक शासन का मुख्य उद्देश्य सत्ता का केंद्रीयकरण करना था|वह एक केंद्र से भारतीय सत्ता का नियंत्रण करना चाहती थी जिसके लिए उन्हें सेना पुलिस और न्याय व्यवस्था जैसी प्रणाली सुचारु रुप से प्रारंभ की||
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन विभिन्न चरणों से गुजरा और उसका व्यापक असर समाज के हर वर्ग पर मिला जुला था|
राजनीतिक संस्थाओं का स्थापना और और संस्थानों के माध्यम से लाखों लोगों का इस आंदोलन से जुड़ना और सत्ता के केंद्रीकरण क और संचार माध्यमों में तीव्र गति से विकास के कारण समाज के हर वर्ग से जुड़ पाया|| आंदोलन की रुपरेखा छोटे-छोटे आंदोलन ऐसे हुए जैसे जैसे राष्ट्रीय आंदोलन सफल हुए देश के हर एक नागरिक मानो अभियान से जुड़कर चला गया राष्ट्रीय आंदोलनों की स्थापना और महात्मा गांधी के नेतृत्व में सामाजिक आंदोलनों और राजनीतिक संस्थाओं के अथक प्रयासों से ही समाज के हर वर्ग को इस अभियान से जुड़ने लगा|| राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के परिणाम स्वरुप राजनीतिक संग औपनिवेशिक नीतियों के विरोध जनमत संग्रह करने का प्रयास कर रहे थे इन सब को कांग्रेस का अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान था| सरकार की सारी जमा-पूंजी इन नीतियों का दमन करने में खर्च हो रही थी इसके परिणाम स्वरुप उन्होंने अतिरिक्त सीमा शुल्क सीमा शुल्क अतिरिक्त कर लगाकर घाटे को कम करने का प्रयास किया परंतु इस दमनकारी नीति के समाज के हर वर्ग हर क्षेत्र में जोरदार विरोध किया|| यद्यपि प्रारंभ में राष्ट्रवादियों ने अपने अभियान को शांतिपूर्ण और कानूनी पद्धतियों से अपनाए हुआ था परंतु शांतिपूर्ण विरोध करना अनशन करना सत्याग्रह करना परंतु कांग्रेस के विभाजन के पश्चात समाज में गर्म और नरम दल के विभाजन के परिणाम स्वरुप उनके विरोध प्रदर्शनों में विभिन्नता स्पष्ट रुप से नजर आने लगी|
स्वदेशी आंदोलनों के बाद गांधी जी ने सभी छोटे छोटे और असाधारण वर्गों की समस्याओं के लिए संघर्ष किया जिम में किसान मजदूर और उपनिवेशवाद से प्रभावित लोगों को एक सूत्र में जोड़ने का प्रयास किया गया| असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन से लोग आपस में जुड़ने लगे जलियांवाला बाग नरसंहार ने तो मानोआक्रोश आक्रोशित हो उठा चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान सबने एक स्वर में विरोध बुलंद किया विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेजों का बहिष्कार किया सभी एकजुट होकर भारत में हर वर्ग एकजुट होकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की गई इस दौर में समाज का हर वर्ग उच्च हो या निम्न एकजुटता के साथ विरोध करने लगे सभी एकमत सूत्र में बन चुके थे || अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे थे
लेखन उत्तम कुमार
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