हिंदू जीवन आश्रम का आधार

                                                                   हिंदू जीवन आश्रम का आधार


 Uttam :प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती यह कहना गलत नहीं होगा कि सामान्य जीवन काल की अवधि को स्वागत मानते हुए हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन काल को चार भागों में विभाजित किया है| जिन्हें आश्रम कहा जाता है ब्रम्हचर्य ग्रस्त वानप्रस्थ और सन्यास प्रत्येक की अवधि को 25 वर्ष निर्धारित की गई है वर्गीकरण के आधार पर अगर देखा जाए तो यह तथ्यों से प्रमाणित हो जाता है|| जैसे कि यौन अंगों का विकसित हो जाना और फिर शिथिल हो जाना बालों का पकने से लेकर झड़ने तक तथा शरीर में उत्साह के संचार से लेकर कमी तक आज भले ही आश्रमों के नाम बदल दिए गए हो परंतु विश्व में आज भी सभ्य मानव हिंदू आश्रम के अनुसार ही जीवन व्यतीत करते हैं और करते रहेंगे||

जीवन के प्रारंभ ब्रम्हचर्य स्थान विद्यार्थी जीवन संयम मूल का प्रारंभ हो जाती है जन्म से लेकर प्रथम 25 वर्ष तक की आयु तक के जीवन को ब्रम्हचर्य   अर्थार्थ विद्यार्थी जीवन माना गया है वैसे तो मानव का जीवन ज्ञानप्राप्ति जन्म काल से ही प्रारंभ हो जाता है औपचारिक शिक्षा हेतु गुरुकुल विद्यालय जाता है विद्यार्थी जीवन को ही संपूर्ण जीवन का आधार माना जाता है|| संपूर्ण चारित्रिक गुणों का संचार से लेकर जीवन के शारीरिक और बौद्धिक विकास इसी काल में होता है जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता का विकास किस काल में होता है ब्रम्हचर्य जीवन पालन हेतु कुछ विशेष नियम बताए गए हैं जिनका महत्व जीवन में गहरा असर होता है | जैसे सादा जीवन प्राकृतिक जीवन शैली ज्ञान प्राप्ति के लिए कठोर संघर्ष आशावादी विचार धाराओं का जीवन में संचार और गुणों से दूर रहने का संकल्प सभी लोगों के प्रति आदर और सम्मान आदि गुणों का विकास होता है

गृहस्थ जीवन को हिंदू जन का आधारशिला माना गया है | सहारे ब्रम्हचर्य वानप्रस्थ सन्यास और पर्यावरण के सभी अंको का निर्वाह करते हैं प्रत्येक के लिए जीवन के आगामी 25 से 50 वर्ष तक के जीवन काल को ग्रस्त जीवन की श्रेणी में रखा गया है इस से वैवाहिक नागरिक की तरह रहना चाहिए| जीवन के  प्रत्येक का अपना कर्तव्य जिसके पालन हेतु ईश्वर ने सृष्टि में की निरंतरता को बनाए रखने के लिए योगदान देना चाहिए | दृष्टि जीवन ब्रम्हचर्य की तुलना में प्राकृतिक है चाहे वो ऋषि मुनि की कथाओं के अनुसार सभी ने ग्रस्त जीवन को अपना है और जिन्होंने नहीं अपना एवं प्रकृति ने स्वच्ता दंडित किया है एकांत में जीवन व्यतीत कर के जीवन यापन करने वाले को ग्रस्त जीवन के बजाय प्राणी मात्र के कल्याण के लिए दैनिक यज्ञ करना चाहिए|

25 से 75 वर्ष तक की आयु का समय वानप्रस्थ आश्रम का है |मानव जीवन का वह समय मनुष्य के स्वेच्छा से वर्तमान पीढ़ी को आगामी पीढ़ी की ग्रंथियों की जिम्मेदारी देकर मुक्त होती है और नई पीढ़ी अपना दायित्व संभालने लगती हैं| और वरिष्ठ बीड़ी नई पीढ़ी में मानसिक तथा सांस्कृतिक प्रशिक्षण देने में व्यतीत करते हैं वर्तमान पीढ़ी भूतकाल और वर्तमान काल और भविष्य काल को जोड़ने की स्थिति के रूप में कार्य करती है इस उम्र काल में जीवन का उद्देश्य भावी पीढ़ी में नैतिक बहुत देख मानसिक प्रशिक्षण देना अच्छी आदतों के संचार के साथ साथ उनका मार्गदर्शन करना नहीं जी अपेक्षाओं तथा आवश्यकताओं को स्वेच्छा से त्याग कर प्रदान कर हमको दूर कर आदर्श जीवन व्यतीत करना|

जीवन के अंतिम चरण सन्यास आश्रम में यदि जीवनकाल सफल रखा तो मानव में कोई अतिरिक्त कामना शेष नहीं रहती ह तक कहा जाता है | इस काल में मोक्ष प्राप्ति के लिए अंतिम पायदान प्राचीन काल में सन्यासी अंतर मुकेश जीवन वनवास में विधायक करते थे आतम कह सकते हैं कि जीवन में अपनी छवि और यादें सुरक्षा से त्याग कर संयास जीवन को अपनाना चाहिए|

जीवन का महत्व हिंदू एवं जीवन काल के आदर्श और विचारों से पूर्णता प्रभावित है|
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